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बिहार चुनाव 2025 : मोदी फैक्टर, जातीय समीकरण और नीतीश की भूमिका पर टिकी बाज़ी

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मोहम्मद आलम

बिहार विधानसभा चुनाव का शंखनाद भले ही आधिकारिक रूप से न हुआ हो, लेकिन सियासी गली-कूचों में चुनावी घमासान की आहट तेज़ हो चुकी है। सभाओं की गूंज, रैलियों का शोर और गठबंधन की बिसात... सब मिलकर यह संदेश दे रहे हैं कि बिहार की सियासत अब गर्म हो चुकी है। ऐसे माहौल में चुनावी विश्लेषक प्रदीप गुप्ता का बयान खास मायने रखता है।
गुप्ता साफ कहते हैं कि—
बीजेपी-एनडीए का असली चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं।
 आरजेडी अब भी मुस्लिम-यादव समीकरण (32%) पर मजबूती से टिकी हुई है।
जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर चर्चा में हैं, लेकिन सत्ता की राह उनके लिए अभी लंबी है।
नीतीश कुमार की भूमिका हर समीकरण में निर्णायक बनी हुई है।

मोदी फैक्टर बनाम जातीय गणित

बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों की तंग गलियों में फंसी रही है। लेकिन गुप्ता का मानना है कि छत्तीसगढ़ की तरह यहां भी बीजेपी बिना सीएम चेहरे के सिर्फ मोदी फैक्टर पर दांव खेल सकती है। यानी चुनावी नारा होगा – “मोदी हैं तो मुमकिन है”। सवाल बस इतना है कि क्या बिहार में यह फॉर्मूला जातीय जोड़-तोड़ पर भारी पड़ पाएगा?

आरजेडी का ‘माई’ समीकरण

आरजेडी अब भी मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण पर भरोसा कर रही है, जो कुल वोट का लगभग 32% है। लंबे समय से विपक्ष में होने के बावजूद आरजेडी की पकड़ कमज़ोर नहीं हुई है। पिछली बार आरजेडी सत्ता से बस एक कदम दूर रह गई थी। गुप्ता याद दिलाते हैं—अगर उस चुनाव में लोजपा एनडीए के साथ होती तो समीकरण 138 सीटों पर जाकर ठहरता। इस बार लोजपा एनडीए के साथ है और यही बदलाव का बड़ा फैक्टर है।

प्रशांत किशोर : चर्चा से सत्ता तक का सफ़र कठिन

प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी लगातार चर्चा में है। वे दो साल से जनता के बीच हैं, पदयात्राएं कर रहे हैं, सभाएं कर रहे हैं। लोकप्रियता बढ़ी है, लेकिन गुप्ता कहते हैं कि “लोकप्रियता को वोट में बदलना आसान नहीं है”। उनकी पार्टी कुछ सीटें ले सकती है, मगर सत्ता अभी दूर है।

नीतीश कुमार : सत्ता संतुलन का स्थायी सूत्रधार

बिहार की राजनीति में एक नाम हर बार निर्णायक रहता है—नीतीश कुमार। पिछले दो दशकों से वे हर समीकरण की धुरी बने हुए हैं। इस बार भी सवाल यही है कि जनता नीतीश के विकल्प के रूप में किसे देखती है? यही कारण है कि बिहार का चुनाव हर बार ‘अप्रत्याशित’ और ‘जटिल’ हो जाता है।

निष्कर्ष

बिहार चुनाव 2025 का असली मुकाबला है—मोदी फैक्टर बनाम जातीय समीकरण।आरजेडी अपनी परंपरागत ताकत पर कायम है, बीजेपी-एनडीए सत्ता वापसी की जुगत में है, जन सुराज पार्टी चर्चा में है और नीतीश कुमार अब भी राजनीति के केंद्रीय सूत्रधार हैं। नतीजों का अनुमान लगाना कठिन है क्योंकि बिहार की राजनीति में समीकरण जितनी तेजी से बनते हैं, उतनी ही तेजी से बिगड़ते भी हैं।

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